कुछ बात है
पानी की आखिरी घूँट की तरह
हलक पे अटक के रह गयी है |
लबों पे आने से डरती है |
ख़ामोशी का धागा और दर्द की बिखरी मोतियाँ
दोनों पड़े हैं टेबल पे ;
कोई आये
इन्हें समेट कर एक तसब्बुर बनाये ||
कुछ बात है
भूले बिसरे रातों के टुकड़ों में लिपटा सा
जैसे ग्रेनाईट का एक टुकड़ा
तुमने किसी नदी में उछाला हो ;
अब ये कितना गहरा जाएगा ,
किसे मालुम !
शायद कभी तह में दफ़न हो जाए ;
शायद |
कोई आये
दो लफ्ज़ कहे ; दो लफ्ज़ सुने
कोई सिलसिला चले |
सिली सिली सी रातों की चुप्पी तो टूटे ||
कुछ बातें और भी हैं
जैसे आजकल चाँद नहीं दिखता ;
पता नहीं क्यूँ ?
खिड़कियां बंद रहती हैं आज कल ;
रूममेट को सर्द लग गयी हैं |
शायद |
सितारे पहले फलक से उतर कर
गोद में बैठा करते थे ;
आजकल वक़्त नहीं मिलता |
अब कोई बालकनी में हवा से बातें नहीं करता ;
कमरे में रहते हैं , चुपचाप |
शायद सर्दी आ रही हैं ;
शायद ||
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