मैंना कुछ तो बोलो ,आँखे खोलो ,
मूर्त प्रकृति में प्राण भर दो |
नीड़ का निर्माण कर दो |
या फिर टूटे बिखरे तिनकों से
रुंधी रुंधी सी साँसों से ,
मुहब्बत का आह्वान कर दो ,
मैंना कुछ तो बोलो ,आँखे खोलो ,
मूर्त प्रकृति में प्राण भर दो ||
या फिर मेरे नैनों के
कतरों कतरों को चुन चुन कर
इक नया निर्माण कर दो ,
या फिर अपने वास्ते
मेरे लफ़्ज़ों को कुर्बान कर दो |
मैंना कुछ तो बोलो ,आँखे खोलो ,
मूर्त प्रकृति में प्राण भर दो |
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