वादों का क्या है ; टूटते हैं ,जार जार होते हैं | अदाओं का क्या है ; पल दो पल का पिंजर है , अक्सर कितने शिकार होते हैं || बंद आँखों में तो यादें झलकती है | निशब्द ,निशांत कहीं दूर गलियों में खोती हुई ; कहीं कंधे पे सर रखकर रोती हुई ; कहीं समझती हुई ,कहीं समझाती हुई ; दूरियों को सिल्क में समेटे दो पहिये पे ढोती हुई || इन यादों से कहो आज नींद से पहले ना आये | इनसे कहो वक़्त बेवक्त ना सताये|| आखिर कब तक चलता रहेगा ये सिलसिला ? दो नैना सीधे साधे से, दो नैना भोले भाले से, छीन रहे हम से हम को ये जुल्फें काले काले से | आखिर कब तक चलता रहेगा ये सिलसिला ? ये सब्नम ,सितारे ये नैन ,ये नक्श ये सब के सब मुझे ही क्यूँ आजमाते हैं ! आ लौट के आजा मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं || स्वप्न को संभालने का अब वक़्त कहाँ हैं ? दो टूक बांचने का अब वक़्त कहाँ है ? कुछ ख्वाइश के चिठ्ठे , इतने प्यासे हैं , कब शाम आती है , कब सहर आता है और जाने कब ये चले जाते हैं ; बस अफ़सोस के कुछ लफ्ज़ हैं घड़ी घड़ी सताते हैं | वो शहर ,वो शमाँ वो उल्फत ,वो कारवां...
|शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर |