बचे खुचे डायरी के पन्ने
लौटा दे मुझे उस उल्फ़त के
दो -चार पुराने से किस्से ।उस साझे -साझे मोहबत से
मेरे अपने सारे हिस्से ।
प्यासे -प्यासे से नैन मेरे
लौटा दे मुझे वो चैन मेरे;
डूबे हैं कहीं बिखरे -बिखरे
उन टुकरे-टुकरे अतीतों में ।
उन लफ़्ज़ों में ,उन गलियों में
उन सर्द परे मेरे गीतों में ।
उन रातों में ,उन बातों में
बरसातों में ,उन शीतों में ।
उन बेफिक्रे से चेहरों में
उन भागती तपती शहरों में ।
लौटा दे मुझे उस उल्फ़त के
दो -चार पुराने से किस्से ।
लौटा दे मुझे उस महफ़िल के
दो -चार सुलगती सी रातें ।
उस साझे -साझे बकवासों से
मेरी अपनी सारी बातें ।
सर्द पड़ी ये आहें मेरी
नर्म पड़ी ये बाहें मेरी ।
ढूंढ़े हैं कहीं ,
राहों पे
फुरसत से चलते दो -चार कदम ।
ढूंढ़े हैं कहीं ,
किसी गोद में
सोये सोये गिनते तारे हम ।
ढूंढ़े हैं कहीं ,
बाहों में
लिपटे -खोये दो -चार नयन ।
ढूंढे हैं कहीं ,
किसी खिड़की से
जाते -जाते से काफ़िर सावन ।
लौटा दे मुझे उस महफ़िल के
दो -चार सुलगती सी रातें ।
लौटा दे मुझे उस डायरी के
बचे -खुचे सारे पन्ने ।
जो आंसुओं के आर में
उस वक़्त भरे ना जा सके ।
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