मैं खुदा हूँ और इंसान बनना चाहता हूँ | मैं चाहता हूँ की मैं करूँ वो सारी गलतियाँ जो इंसानों से अनायास हो जाते हैं | मैं चाहता हूँ तोड़ दूँ वो सारे बंधन वो सारी बेड़ियाँ जिसने मुझे प्रतिष्ठित किया है खुदाओं के आसमान में | मैं चाहता हूँ की डूब मरुँ तुम्हारी नज़रों में और उतरूँ जमीं पे | मैं खुदा हूँ और इंसान बनना चाहता हूँ जिसे रोक रखा है तुम और तुम्हारी धाराओं ने, जिसने मेरी नींद में तय कर दिया मेरा वजूद तुम जिसने ठहरा रखे हैं हर एक सख्स की आँखों पे पहरे तुम जिसने दरवाजों पे लगा रखी है कुंडियाँ; तुम जिसे डर लगता है कहीं ये दरवाजे टूट न जाए | मैं चाहता हूँ की मैं तोड़ दूँ ये सारी खौफ की कुंडियाँ और बाँध दूँ हर एक दरवाजे पे प्रेम के धागे | मैं चाहता हूँ की मैं जला दूँ ये सारे रिश्तों के बने बनाये मापदंड और दर्ज करूँ रिश्तों के नाम एक नया संविधान: जिसके कुछ पन्ने सादे हों -बिलकुल खाली प्रेम के नाम समर्पित | लेकिन मैं कर नहीं सकता क्योंकि मैं खुदा हूँ, विद्रोह का हक़ मुझे नहीं है |
|शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर |