मेरे साथ चलोगी क्या चाँद पर साथ साथ चाँद पर चलेंगे और चाँद से चीन की दीवार देखेंगे | खैर चीन की दीवार है; चीन जाके भी देखी जा सकती है लेकिन फिर काफी बड़ी नज़र आएगी, हमारी बाहें उन्हें आंक नहीं पाएंगी हमारी नज़रें उसे एक टक में समेट नहीं पाएंगी और हमारी मुहब्बत उसके सामने नाचीज़ सी लगेगी | इतने विस्तृत जमीं और इतने फैले आसमान में उस चीन की दीवार का इतना भी क्या वजूद ? जैसी भी है है तो एक दीवार ही किसी के मुहब्बत से बड़ी कैसे हो सकती ? इसीलिए कहता हूँ मेरे साथ चलोगी क्या चाँद पे वहीँ से चीन की दीवार देखेंगे और फिर खिलखिला के हँसेंगे "हमारी मुहब्बत के सामने कितनी नाचीज़ सी है चीन की दीवार" |
|शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर |