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Showing posts from April, 2016

रेल और पुल

तू किसी रेल सी गुजरती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ | _____ दुष्यंत कुमार | ********************************************************************** जब ट्रेन आती है , तुम्हारी याद आती है; एक स्क्रीच वाली ध्वनि के साथ तुम्हारी याद आती है | तुम दुष्यंत कुमार की गजल जैसी हो रेल सी गुजरती हो मैं विद्रोही का पत्थर देवता जैसा नज़र आता हूँ देवता नहीं हूँ | एक टूटे हुए पुल का अवशेष मात्र हूँ जिसे किसी ने  ठोकर मार कर सड़क किनारे पहुँचा दिया और फिर किसी ने फूल बाँध कर टीका चढ़ा दिया | मैं भी दुष्यंत कुमार की गजल जैसा हुआ करता था | तुम रेल सी गुजरती थी मैं पुल सा थरथराता था तुम गुजरती थी, मैं थरथराता था तुम गुजरत थी, मैं थरथराता था | और अब मैं टूट के गिर गया हूँ "ममता" के फ्लाईओवर की तरह बिखर गया हूँ | लेकिन तुम रेल हो तुम गुजरती रहना नये  पुल का  तलाश करना और गुजरती रहना | क्यूंकि तुम जिंदगी को जोड़ती हो क्यूंकि तुम लम्हों को खुबसूरत बनाती  हो क्यूंकि तुम हर यायावर के सफ़र की साथी हो | मैं भी कोशिश करूँगा की इस बार पढ़े लिखे अभियंताओं के हाथ लगू...

खूबसूरत

कितना खूबसूरत होता - हमारे तुम्हारे बीच जो एक दीवार बन गयी है उसमें एक खिड़की भी बन जाती | कभी हम खोल लिया करते और देखते तुम सुकून से सो रही हो; कभी तुम खोल लिया करती और देखती मैं सुकून से सिगरेट जला रहा हूँ || तुम्हारे और हमारे बीच एक इश्क का रिश्ता होना सबसे खूबसूरत नहीं होता | सबसे खूबसूरत होता है कुछ नहीं होना और फिर भी इतना कुछ का हो जाना | सबसे खूबसूरत होता है टूटे रिश्ते में भी एक दूसरे का ख्याल आना | सबसे खूबसूरत लम्हें तस्वीरों में नहीं आते; इन्स्टा ग्राम की वो सारी पिक्चरें सबसे खूबसूरत नहीं होती ; सबसे खूबसूरत होता है वीरान सड़क पे धुप्प अँधेरे में एक थके हुए दोस्त का आपके कंधे पे सो जाना | वो एक लम्हा जिसमें पल रहा है आपके दर्द के सहारे किसी का सुकून ; सबसे खूबसूरत होता है वो एक लम्हा जिसे कोई मेगापिक्सल कैद नहीं कर सकता |