तू मेरा पेशा न बन , जुस्तजू तो बन तू मेरी आदत न बन, आरजू तो बन ॥ मेरे उदास शामों को तू रौशनी दे न दे कम से कम रौशनी के हूबहू तो बन ॥ तू मुझे मान ना मान , पहचान ना पहचान मेरे शिकस्त -ए -लफ़्ज़ का आबरु तो बन ॥ मेरे साथ न चल, मेरा हाथ न थाम तू मेरी रगों में दौड़ , लहू तो बन ॥
|शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर |