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Showing posts from October, 2015

तू मेरी रगों में दौड़ , लहू तो बन ॥

तू  मेरा पेशा न बन , जुस्तजू तो बन तू मेरी आदत न बन, आरजू तो बन ॥ मेरे उदास शामों को तू रौशनी दे न दे कम से कम रौशनी के हूबहू तो बन ॥ तू मुझे मान ना मान , पहचान ना पहचान मेरे शिकस्त -ए -लफ़्ज़ का आबरु तो बन ॥ मेरे साथ न  चल, मेरा हाथ न थाम तू मेरी रगों  में दौड़ , लहू तो बन ॥ 

ये इंस्टाग्राम वाली हंसी, इतनी भी सच्ची नहीं

बेबसी और बारे-गम का सीने में ख्याल कहीं उनकी चुप्पी में बीतता है, अपना दिले- हाल कहीं ॥ हमने पिछले ही पहर अपनी सारी चाल चल दी क्यों ठिठक के रह गया है, उनका आखिरी चाल कहीं ॥ कुचल के पुराने आसमां, हम बढे हैं इस तरफ इत्तेफ़ाक़े रह गया है, जेब में उनका रुमाल कहीं ॥ ये इंस्टाग्राम वाली हंसी, इतनी भी सच्ची नहीं बंद कमरे  में हमें, रो लेने दो फिलहाल कहीं ॥ आखिरी सांस टूटी, तब जा के ख़्याल आया काश पहले आया होता, खुदा  का ख़्याल कहीं ॥ खैर जब उठाओगे हमारा जनजा , काँधे तुम मेरे नाम कर देना  बाज़ीचा ऐ अत्फ़ाल कहीं ॥    बाज़ीचा ऐ अत्फ़ाल= Kid's Playground बारे-गम = Weighted with pain