जब कभी
किसी नुक्कड़ पे
कोई किसी के काँधे में
हाथ डाले चलता है ;
टूटते तारों को फूंक फूंक के
कसमें - वादे करता है ;
सामने वाले की लबों पे
अपनी नन्ही सी अंगुली रखकर
अनचाही बातों से डरता है ;
तब
वो सारी सोहबतें,
सारी शामें ,सारे सफ़हे
(जिनमें दर्ज हैं तुम्हारे हमारे अफ़साने)
याद आते हैं ;
जिन्हें मैंने जला डाला |
मैं इस कसमकश में दर बदर
भटक रहा हूँ बेखबर :
इस जलती बुझती चिंगारी में
मेरा कितना हिस्सा है |
मैं आदि हूँ या अंत सजर
मैं वक्ता हूँ या मूक प्रखर
गर मैं काठी हूँ तो माचिस कौन है ?
अब इतना तो तुझे समझ होगा जानां
चिंगारी यूँ ही नहीं जलती |
ये धुआँ
जितना मेरा है
उतना ही तुम्हारा भी ||
किसी नुक्कड़ पे
कोई किसी के काँधे में
हाथ डाले चलता है ;
टूटते तारों को फूंक फूंक के
कसमें - वादे करता है ;
सामने वाले की लबों पे
अपनी नन्ही सी अंगुली रखकर
अनचाही बातों से डरता है ;
तब
वो सारी सोहबतें,
सारी शामें ,सारे सफ़हे
(जिनमें दर्ज हैं तुम्हारे हमारे अफ़साने)
याद आते हैं ;
जिन्हें मैंने जला डाला |
मैं इस कसमकश में दर बदर
भटक रहा हूँ बेखबर :
इस जलती बुझती चिंगारी में
मेरा कितना हिस्सा है |
मैं आदि हूँ या अंत सजर
मैं वक्ता हूँ या मूक प्रखर
मैं माचिस हूँ या काठी हूँ ;
गर मैं माचिस हूँ तो काठी कौन है गर मैं काठी हूँ तो माचिस कौन है ?
अब इतना तो तुझे समझ होगा जानां
चिंगारी यूँ ही नहीं जलती |
ये धुआँ
जितना मेरा है
उतना ही तुम्हारा भी ||
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