कुछ खबर, कुछ बेखबर सा रहता है दिन आजकल बे-असर सा रहता है ॥ छुपाये कहाँ , ख़ामोशी की आबरू अपनी हर एक नज़र, एक नज़र सा रहता है ॥ कुछ इस तरह हुआ है, फ़िज़ाओं का असर वो अपने कमरे में भी, दफ्तर सा रहता है ॥ फकीरी का चराग बनकर उठता है हर रात खैर, अपने ही नज़्मों में, पिंजर सा रहता है ॥ आश्ना से बेफिकर , फलसफों से बहुत दूर पेशे से इंजीनियर है , शायर सा रहता है ॥