बे काफिये हो चले हैं जिंदगी के सारे अशार
तुम्हारे हर एक कयास पे रोये हैं हम जार जार ||
जख्म है तो स्याही नहीं , स्याही है तो जख्म नहीं
कुछ इस तरह से चल रहा है हमारे लफ़्ज़ों का कारोबार ||
रोज़ रोज़ के तमाशे सी है , हमारी तुम्हारी दिल्लगी
न वो रंज, न कहकहे ,बस बेरुखी बार बार ||
तुम्हारे हर एक कयास पे रोये हैं हम जार जार ||
जख्म है तो स्याही नहीं , स्याही है तो जख्म नहीं
कुछ इस तरह से चल रहा है हमारे लफ़्ज़ों का कारोबार ||
रोज़ रोज़ के तमाशे सी है , हमारी तुम्हारी दिल्लगी
न वो रंज, न कहकहे ,बस बेरुखी बार बार ||
पुराने असरे का चौखट, दरकते सारिल के दरवाजे
उम्र हो चला इश्क़ का , अब तो तौबा कर लो 'कुमार' ||
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