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Showing posts from July, 2015

बे काफिये हो चले हैं जिंदगी के सारे अशार

बे काफिये हो चले हैं जिंदगी के सारे अशार तुम्हारे हर एक कयास पे रोये हैं हम जार जार || जख्म है तो स्याही नहीं , स्याही है तो जख्म नहीं कुछ इस तरह से चल रहा है हमारे लफ़्ज़ों का कारोबार || रोज़ रोज़ के तमाशे सी है , हमारी तुम्हारी दिल्लगी न वो रंज, न  कहकहे ,बस बेरुखी बार बार || पुराने असरे का चौखट, दरकते सारिल के दरवाजे  उम्र हो चला इश्क़ का , अब तो तौबा कर लो 'कुमार' ||

लबों को याद आता है तुम्हारा इतना होना ।

१. यूँ हर जंग में तुम्हीं से सामना होना लबों को याद आता है तुम्हारा इतना होना ।। २. दिन की तसल्ली रातों की नींद बिखर जाती है इश्क़ में मुनासिब है यूँ परेशां होना ।। ३. मेरे हर लफ्ज़ पे उनकी आँखें झुक जाती है दिलों  को रास आता है यूँ जाने जां होना ॥  ४. उम्मीदों के लौ पे जो  जलता रहा सारा इश्क़ भूल बैठे हम बातियों का कुरबआं  होना ॥ ५. ता उम्र हमने बस इतनी सी रक्खी थी ख्वाइश हमसे बेवफा होना , ना कभी मेहरबाँ होना ॥ ६. जवानी फूलों में जिया , छुटपन तितलियों के संग बस की दौड़ आया है , संभल के बागबां होना ॥ ७. जोड़ते जाओ ईंटों को ईंटों से कुमार हर किसी की किस्मत नहीं आलिशां होना॥