बस इसी तरह सबों के सामने लड़ते रहे हम ; और चुप चुप के छुप छुप के आहें भरते रहे हम | जीने को और क्या चाहिए || कोई नींद में ऐसे ही छम्म से आया करे ; कोई अश्कों में खुद को मिला के रुलाया करे; कोई उम्मीद से हम उनके रास्ते देखा करें और वो आँख झुकाए ही गुजर जाया करे| जीने को और क्या चाहिए || किसी के वास्ते सुरूर इतना दिल में जम जाए ; की एक मुस्कराहट पर ही पिघल जाया करे | कोई आइने में इस तरह से नज़र आने लगे की सजे वो , और हम संवर जाया करें | जीने को और क्या चाहिए || ........................................................... <किसी की ख्वाइशओं पे ऐसे मरने लगे हम > किसी के लफ़्ज़ों की इनायतों में हर रात जगे हम ; की फलक में जुल्फें , सितारों में आँखें ,नज़र आने लगे हैं | और जो मौसमों की सायरी हमने बुनी थी ; वही आज हमारे सिरहाने लगे हैं | अब किस किस से करें शिकायत उनकी हर चेहरे में वही नज़र आने लगे हैं ; जो उम्र ढल गयी ; इश्क से बेहतर हकीकत ढूंढने में : अब हम भी मोहब्बत से ही काम च...
|शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर |