कभी यूँ भी तो हो
की आपके बाँहों में शाम हो ,
आपकी महफ़िल में मेरा नाम हो
और आपके गुलशन में हमारा गुलफाम हो |
कभी यूँ भी तो हो
कोई उम्मीद से हमें मुहब्बत सिखाये ,
इश्क-ए-महफ़िल में हमें सिरकत सिखाये ,
और करीने से उल्फतों के नजाकत सिखाये |
कभी यूँ भी तो हो
हम बाहों में रहे तुम्हारे ,
कब तक जियेंगे बस सपनो के सहारे ;
हम बंद आँखों से देखते रहे ,
हकीकत के चश्मदीद गवाह |
कोई चूमे हमें बेपनाह
हम खोये रहे लापरवाह ,
और इन् दूरियों से दूर कोई मकाँ बनाएं
एक गीत लिखें :
और अन कहे लफ़्ज़ों का कारवां सजाएं ||
कभी यूँ भी तो हो
हम इत्तेफाके आपसे मिलें |
साजिश के तहत तो सब मिलते हैं ||
* dedicated to and with inputs from Grim .
bhai kuchh present kiya hai ... special last para .. mast
ReplyDeletepoems turn beautiful when the reason behind it are beautiful
ReplyDeleteself praise #
u are good at self praise ...........
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