चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों | चलो उस रास्ते को आखिरी सलाम कह दे हम , जहाँ से आशिकी और उम्र का सैलाब बहता था | चलो अब अपने वास्ते कोई अंजाम ढूंढे हम ; चलो किसी और चेहरे में कोई पैगाम ढूंढे हम ; चलो किसी धुंध कोहरे में कोई मंजिल तलाशें हम ; चलो ,की अश्क से धो कर कोई ख्वाइश तराशें हम ; चलो, की आम नगरी में कोई सौगात ढूंढे हम ; चलो, की आम बातों में कोई नयी बात ढूंढे हम ; चलो, की बिछड़े रातों में कोई नयी रात ढूंढे हम : चलो ,की बेजार लफ़्ज़ों में कोई मुलाकात ढूंढे हम : चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों | ...................................................................
|शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर |