mayankchoudhary's photography |
चांदनी....
चादरों सी बिछी ...
देखो आज पिघलने को आई है।
देखो रात ढलने को आई है ।
कहानी
जो दो लब्जों में
कभी ना कही जा सकी
देखो आज छलने को आई है ।
देखो रात ढलने को आई है ।
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तुम हाथ मिलाती हो
हम गले लगाते हैं ।
तुम दरिया फैलाती हो
हम डूबे जाते हैं ।
तुम आँख मिलाती हो
हम आँखों में जीते हैं ।
तुम रोये जाती हो
हम आंसू पीते हैं ।
तुम प्रणय के गीत गाती हो
हम लब्ज़ बनातें हैं।
तुम रुक सी जाती हो
फिर भी हम आते- जाते हैं।
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वक़्त मिले
तो आईने में
देखा करो कभी ।
गुलशन पे अरसों से मायूशी छाई है।
देखो रात ढलने को आई है।
चादरों सी बिछी ...
देखो आज पिघलने को आई है।
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