It reminds me of old freshers days , we were three or may be four , including me .Lined up and asked to take a smoke , every one denied with an innocent excuse " I am sorry ,I don't "; and they were forced to take a sip . When it came to my turn , I didn't deny ,rather I changed the topic diplomatically , I said " मैं सिगरेट तो नहीं पीता मगर हर आने वाले से पूछ लेता हूँ कि "माचिस है?" बहुत कुछ है जिसे मैं फूंक देना चाहता हूँ " Hence I flipped the topic to a newer dimensions , point is they rather forgot to force me. Happy Birthday Gulzar and a short poem : तुम और तुम्हारे दरियाओं के कांटे तुम्हारे दीवारों पे उभरते स्केच सारी बेचैन परछाइयाँ तुम्हारे बोस्की ब्याहने का वक़्त तुम्हारे सुर , तुम्हारी शहनाइयां रातों के सन्नाटे जुम्बिश , आहट , सरगोशियाँ तुम्हारे जले बुझे अधकहे ख्यालों की राख एक खामोश अपनापन है हर एक पूर्णविराम में || तुम्...